राष्ट्र प्रेम- काव्य संग्रह 30-Jan-2024
राष्ट्रहित
अन्न-जल जो देश है देता, उससे तुमको है प्यार नहीं। गात के अंदर दिल मुर्दा है, जहाॅं देशभक्ति का धार नहीं।
भारत -भूमि पर जन्म लिए हो, खेल-कूद कर बड़े हुए। क्या कर्तव्य ना कोई तुम्हारा? जिसकी रज में तुम खड़े हुए।
अनुपम ,अप्रतिम संस्कृति यहाॅं की , परंपरा मन को भाती है। प्राकृतिक सौंदर्य में देश है डूबा, सबका मन हर्षाती है।
जन्मे, खेले ,पले बढ़े हो, गात मिला इस मिट्टी से। इसका ऋण है तुम्हें चुकाना, विस्मित ना हो स्मृति से।
भारत- भूमि की सुंदरता में, अपने मन को रमाएंँगे ज्ञान-वैभव का परचम, फिर दुनिया में लहराएंँगे।
देशप्रेम की उत्कंठा से, देशभक्ति पुष्पित होगा। तभी समूचे भारतवासी के घर, हॅंसी-खुशी पल्लवित होगा।
देश पर यदि कोई संकट आए, सर्वस्व समर्पण कर देंगे। भारत माॅं के सच्चे सपूत बन, रक्त का हम कण-कण देंगे।
देश के नाम पर लगे न धब्बा, ना कोई करतब ऐसा हो गौरव इसका सदा बढ़ाएंँ, कर्म हमारा वैसा हो।
राष्ट्र की निंदा करे जो कोई, जीभ काट दे हाथ धरें। देशोन्मुख सदा करतब होवे, स्व-हित की ना बात करें।
पालन- पोषण धरा है करती, हम भी कुछ करना सीखें। इसके प्रति हम प्रेम दिखाएंँ, इसके हित मरना सीखें।
अंतस में जगे उदार भावना, सर्व-हित की सदा बात करें। देशोत्थान तभी संभव है, जब हाथ में लेकर हाथ चलें।
राष्ट्र का हित सबसे ऊपर हो, दूजे में समाज हित हो। तीजा हित हो गाॅंव गली का, अंत में चिंतन स्व-हित हो।
2-ज़रूरी है
समय के साथ बदलना ज़रूरी है, ज़िंदगी में अनवरत चलना ज़रूरी है, बिन बदले कभी ज़िंदगी आगे नहीं बढ़ती, उत्थान राष्ट्र का करने को, व्यवधानों से लड़ना ज़रूरी है।
राह जितनी भी मुश्किल हो, एक दिन आसान होगी, ठोकरें खाकर ही हम पर, किस्मत मेहरबान होगी, किस्मत बनाने को , परिश्रम करना ज़रूरी है। उत्थान राष्ट्र का करने को, जलना ज़रूरी है।
एक छोटे से दिए से , अंँधेरा घबरा है जाता , चिरागों सा ख़ुद को जलाओ, अंधेरा वहाॅं टिक न पाता, अमावस का तमस हरने को, दिवाली को लाना ज़रूरी है। उत्थान राष्ट्र का करने को, अनवरत चलना ज़रूरी है।
प्रगति पथ पर जब बढ़ेंगे, व्यवधान आ राह रोक लेंगे, किंतु, गंतव्य को हासिल करने हेतु, व्यवधानों को कुचलना ज़रूरी है। उत्थान राष्ट्र का करने को, अनवरत बढ़ना जरूरी है।
3- आसान नहीं कुंदन बनना
कुंदन बनना आसान नहीं, कायर का यह काम नहीं।
यह अति वारों को सहता है, तब जाकर कुंदन बनता है।
एक बार नहीं ;कई बार है तपता, तब होता है कनक खरा ।
एक बार हार भी जाओ तो, मन में बस हो उत्साह भरा।
कभी राह बंद हो जाए तो , तुम उससे ना घबरा जाना ।
तुम कर्मवीर हो कर्मवीर सा, शीघ्र नया मार्ग बना लेना।
मत घबराना आंँधी तूफ़ान से, बस पथ पर तुम बढ़ते जाना।
एक दिन बाधाएंँ थम जाएंँगी उनको तुम रौंद के चल देना।
फूलों की सेज यदि चाहते हो तो, काॅंटों से भी प्यार करो।
जीवन समर है ना घबराओ, कहता जो है उसे कहने दो।
तुम कर्म करो आगे बढ़ लो, सब राग द्वेष को भूलो तुम।
असंभव से तुम दूर रहो, खुशियों के झूले में झूले तुम।
भाग्य नहीं सब कुछ देता, मानव खुद अर्जित करता है।
अर्जन में व्यवधान जो आए, उसको नतमस्तक करता है।
प्रकृति के उपादानों से सीखो, कभी न डरना झुकना है।
एक बार ठान लिए हो तो , बस पीछे ना मुड़ना है।
उद्यम; श्रम वह मूल मंत्र है , जो सबको सफल बनाता है।
भाग्य भरोसे वही बैठता, जिसका उद्यम से नहीं नाता है।
यदि राह में आंँधी आती है, उनका रुख तुम मोड़ चलो।
हर गिरि- गह्वर हट जाएंँगे, उनको मोड़ने का कर होड़ चलो।
पथ सारे बंद यदि भी हैं , तो खुद पथ का निर्माण करो।
अभय मार्ग पर बढ़ जाओ, निज भुजबल से कर त्राण चलो।
साधना शाही, वाराणसी
Gunjan Kamal
02-Feb-2024 04:39 PM
बहुत ही
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Mohammed urooj khan
31-Jan-2024 12:54 AM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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